मुंबई। बैंक ऑफ बड़ौदा ने प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी बान्द्रा-कुर्ला कॉम्पलेक्स, मुंबई स्थित अपने कार्पोरेट कार्यालय में माइक्रोसॉफ्ट के संयुक्त तत्त्वावधान में “डिजिटल युग में भाषा का महत्व एवं चुनौतियों” इस कार्यक्रम में मुंबई स्थित सभी बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के उच्च कार्यपालकों के साथ-साथ राजभाषा प्रभारियों तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिकारियों ने भी भाग लिया। मुख्य अतिथि थे केंद्र सरकार में वित्तीय सेवाएँ विभाग में संयुक्त सचिव (राजभाषा) श्री वेद प्रकाश दुबे और मुख्य वक्ता थे माइक्रोसॉफ्ट के लोकलाइजेशन लीड (स्थानीयकरण प्रमुख) बालेन्दु शर्मा दाधीच। बैंक के कार्यकारी निदेशक श्री अशोक कुमार गर्ग ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस मौके पर भारतीय रिज़र्व बैंक के महाप्रबंधक (राजभाषा) श्री रमाकांत गुप्ता, बैंक ऑफ बड़ौदा के महाप्रबंधक (आईटी) श्री एसएस घाग और उपमहाप्रबंधक (राजभाषा) श्री जवाहर कर्नावट भी मौजूद थे। सेमिनार के प्रारंभ में बैंक ऑफ़ बड़ौदा की ओर से उप महाप्रबंधक (राजभाषा) डॉ. जवाहर कर्नावट ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। बैंक के महाप्रबंधक (आईटी) श्री एस. एस. घाग ने विषय प्रवर्तन किया और बैंक द्वारा आईटी के क्षेत्र में हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में की गई पहलों को विस्तार से बताया।
भाषाओं के समक्ष चुनौती भी, अवसर भी
मुख्य वक्ता बालेन्दु शर्मा ने कहा कि भाषाओं के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ एक सच्चाई हैं लेकिन इस दौर में किसी भी भाषा या लिपि के संरक्षण के लिए ज़रूरी है कि वह कारोबार, व्यवसाय, दैनिक जनजीवन और शिक्षा के साथ-साथ तकनीक के साथ जुड़कर चले। भारत में उपभोक्ताओं की विशाल संख्या और उनकी बढ़ती आर्थिक शक्ति वैश्विक कंपनियों को हमारी भाषाओं को साथ लेने के लिए विवश कर रही है। दूसरी ओर तकनीकी माध्यमों में हिंदी और दूसरी भाषाओं का प्रयोग धीरे-धीरे सहज होता चला जा रहा है जिससे झिझक और असुविधा की दीवार टूट रही है। श्री दाधीच ने कहा कि तकनीक के व्यावसायिक उद्देश्य तो उसे भाषाओं को साथ लेकर चलने के लिए प्रेरित कर ही रहे हैं, बुनियादी रूप से तकनीक की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक और समावेशी है क्योंकि उसका उद्देश्य लोगों के जीवन को सुविधाजनक बनाना है, दूरियाँ खड़ी करना नहीं।
बालेन्दु दाधीच ने कहा कि यही वजह है कि आज जबकि भारतीय भाषाओं में इंटरनेट का प्रयोग करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 13 करोड़ हो गई है और देश में मोबाइल उपभोक्ताओं का आंकड़ा एक अरब के आसपास जा पहुँचा है तब तकनीक हमारी भाषाओं के साथ खड़ी होती दिखाई दे रही है। हिंदी इंटरफेस युक्त स्मार्टफोन आ रहे हैं, हिंदी में ऑपरेटिंग सिस्टम आ गए हैं और ई-कॉमर्स तथा ई-गवरनेंस और क्लाउड जैसे क्षेत्रों में हिंदी का दखल बढ़ा है। इधर यूनिकोड ने लिपियों के संरक्षण में अहम भूमिका निभाई है। तमाम व्यावहारिक सीमाओं के बावजूद इंटरनेट भाषायी साहित्य तथा विषय-वस्तु को प्रसारित करने का महत्वपूर्ण माध्यम बन चुका है।
तकनीक भाषाओं के साथ
भाषायी क्षेत्र में आ रही नई तकनीकें उम्मीद जताती हैं कि अगर हम इन तकनीकों का सार्थक इस्तेमाल कर सके तो बहुत सी भाषाएँ, जिनका अस्तित्व आज संकट में दिखता है, बचाई जा सकेंगी। जहाँ ध्वनि प्रोसेसिंग तकनीकों और ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (ओसीआर) जैसी सुविधाओं से भाषायी सामग्री के डिजिटलीकरण, संरक्षण और प्रसार का मार्ग सुगम हुआ है वहीं मशीन अनुवाद ने भाषाओं के बीच दूरियाँ घटाने की उम्मीद जगाई है। श्री शर्मा ने माइक्रोसॉफ्ट में मशीन अनुवाद के क्षेत्र में किए गए कार्य की जानकारी दी और हिंदी तथा अंग्रेजी के बीच पारस्परिक अनुवाद के उदाहरण दिखाए। उन्होंने यह भी दिखाया कि किस तरह स्काइप में बोली हुई ध्वनियों का एक से दूसरी भाषा में अनुवाद किया जा सकता है। श्री शर्मा ने कहा कि तकनीक भाषाओं के विकास और संरक्षण की दिशा में अहम भूमिका निभाने जा रही है, ज़रूरत है तो उसका साथ देने की, इस प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने की और इसे अपनाने की।
भारतीय भाषाओं का जज्बा
केंद्र सरकार के वित्तीय सेवाएँ विभाग में संयुक्त सचिव (राजभाषा) श्री वेद प्रकाश दूबे ने भारतीय भाषाओं के समक्ष चुनौतियों को स्वीकार करते हुए कहा कि हमारी भाषाओं में अपना अस्तित्व बनाए रखने का कमाल का जज्बा है जो तमाम चुनौतियों के बावजूद उन्हें लुप्त नहीं होने देता। हिन्दी और भारतीय भाषाओं के उपयोग से ही बैंक अपने उत्पादों को जन-जन तक पहुंचा सकते हैं और भारत सरकार की वित्तीय समावेशन संबंधी सभी योजनाओं को सही रूप में क्रियान्वित कर सकते हैं। भाषायी चुनौतियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हमें सटीक शब्दों का अभाव, नए शब्दों के गठन की ओर उदासीनता, अपनी भाषा के प्रयोग में संकोच आदि प्रवृत्तियों से मुक्त होने की ज़रूरत है।श्री दूबे ने सेमिनार के आयोजन संबंधी बैंक ऑफ़ बड़ौदा की पहल की सराहना की तथा अन्य सभी संस्थानों से भी इस तरह के आयोजन करने का आह्वान किया।
भारतीय रिज़र्व बैंक के महाप्रबंधक (राजभाषा) डॉ. रमाकांत गुप्ता ने डिजिटल युग में क्षेत्रीय भाषाओं में संवाद तथा बैंकिंग क्षेत्र में भाषायी चुनौतियों पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि रिजर्व बैंक ने कई रिपोर्टें और पुस्तिकाएँ ई-बुक की शक्ल में इंटरनेट पर उपलब्ध कराई हैं।
बैंक के कार्यकारी निदेशक श्री गर्ग, महाप्रबंधक (आईटी) श्री घाग और उपमहाप्रबंधक (राजभाषा) श्री कर्नावट ने भी गोष्ठी को संबोधित किया। उन्होंने राजभाषा कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के संदर्भ में बैंक ऑफ बड़ौदा की उपलब्धियों का विवरण दिया और बताया कि सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाने में बैंक लगातार बढ़त बनाए हुए है। गोष्ठी को अन्य बैंकों से आए प्रतिनिधियों ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन मुख्य प्रबंधक (राजभाषा) श्री पुनीत कुमार मिश्र ने किया और धन्यवाद ज्ञापन श्री जय प्रकाश सौंखिया ने किया।