ईमानदारी से सोचिए कि तेलंगाना के विधायक के लक्ष्मण द्वारा सानिया मिर्जा के बारे में आई विवादित टिप्पणी से पहले क्या कभी आपके मन में यह ख्याल आया था कि सानिया का भारत के साथ छोटा और पाकिस्तान के साथ बड़ा रिश्ता है? वह भी छोड़िए, क्या सानिया मिर्जा का नाम पढ़ने, सुनने या दिमाग में आने पर आपके मन में किसी भी तरह से पाकिस्तान की छवि उभरती है? मुझे उम्मीद है कि इस प्रश्न पर मेरी ही तरह 99 फीसदी लोगों का उत्तर 'ना' में होगा। फिर कैसे कोई एक शख्स उन लोगों पर, जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया है और जिनके योगदान पर हमें गर्व है, इतनी आसानी से इतने बड़े सवाल खड़े कर देता है? क्या आपने राजनैतिक लाभ के लिए किसी पर भी कीचड़ उछालना जायज है? उन लोगों पर भी, जिनका राजनीति से दूर-दूर तक संबंध नहीं और जो अपने-अपने क्षेत्र में देश का नाम करने में जुटे हैं?
सानिया मिर्जा के विरुद्ध के लक्ष्मण की टिप्पणी की विधिवत्, पर्याप्त और चौतरफा निंदा हो चुकी है, जिसकी वह अधिकारी है। सानिया बुरी तरह आहत हुई हैं, इसमें संदेह नहीं। लेकिन शायद उन्हें खुश होने की ज्यादा जरूरत है क्योंकि इस देश ने दिखा दिया है कि वह उन पर फख़्र करता है और इक्का-दुक्का लोगों की संकीर्णताओं के प्रभाव में आने वाला नहीं है। यह घटना न होती तो शायद सानिया को देशवासियों के प्यार और लगाव का पता नहीं चलता। लेकिन एक समर्पित भारतीय को, और सानिया मिर्जा की भारत-निष्ठा असंदिग्ध है, अपनी भारतीयता सिद्ध करने के लिए बयान देना पड़े, वह सचमुच बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
सानिया ने किससे विवाह किया, यह उनके निजी जीवन का विषय है और सार्वजनिक बहस या टीका-टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि उन्होंने एक पाकिस्तानी नागरिक के साथ निकाह के बाद भी भारत की नागरिकता नहीं छोड़ी है और पाकिस्तान की नागरिकता ग्रहण नहीं की है। वे आज भी भारत की ओर से खेलती हैं और जैसा कि उन्होंने कहा है, हमेशा भारत की ओर से ही खेलती रहेंगी। सानिया ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं थीं। शायद वे पाकिस्तान की नागरिकता लेतीं और उसकी तरफ से खेलतीं तो पाकिस्तान में उन्हें और भी अधिक सम्मान मिलता, जहाँ टेनिस में और महिलाओं में इस स्तर के खिलाड़ियों का अस्तित्व नहीं है। फिर भी सानिया भारतीय बनी रहीं तो क्या यह इस बात का पर्याप्त आधार नहीं है कि वे उनकी देशभक्ति और निष्ठा असंदिग्ध है? ये वही खिलाड़ी हैं जो करोड़ों की इनामी राशि वाले टूर्नामेंटों को छोड़कर ओलंपिक, एशियाई खेलों, डेविस कप, फेडरेशन कप और राष्ट्रमंडल खेलों आदि में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए लालायित रहते हैं। जिनके लिए हमेशा देश के लिए खेलना पहली वरीयता होती है। अफसोस कि कुछ लोगों को ऐसे गौरवपूर्ण व्यक्तित्वों की देशभक्ति को कटघरे में खड़ा करने में संकोच नहीं होता।
राजनीति के लिए कुछ भी
तेलंगाना के विधायक के लक्ष्मण भाजपा से संबंधित हैं। यदि वे किसी और दल से संबंधित होते तो भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। वास्तव में ऐसे लोगों को किसी दल से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्हें विशुद्ध राजनीतिज्ञ की श्रेणी में गिनकर चलना चाहिए जो अपने राजनैतिक उद्देश्य के लिए कुछ भी कह सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं। श्री लक्ष्मण की जिस टिप्पणी से सानिया और देश के अधिकांश लोग आहत हुए वह उन्हें तेलंगाना राज्य की ब्रांड एंबेसडर बनाए जाने के खिलाफ है। उन्होंने इस आधार पर सानिया के चयन पर आपत्ति की है कि एक तो वे तेलंगाना में पैदा नहीं हुई हैं और दूसरे वे 'पाकिस्तान की बहू' हैं। पहले मामले में सानिया इस बात का पर्याप्त विवरण दे चुकी हैं कि वे तेलंगाना की नागरिक हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ क्योंकि उनकी माँ को स्वास्थ्य से संबंधित ऐसी समस्या थी जिसकी वजह से उन्हें सानिया के जन्म के समय मुंबई के अस्पताल में दिखाना जरूरी था। जन्म के बाद से वे जीवन भर हैदराबाद में रही हैं। सानिया कहती हैं कि वे ही नहीं बल्कि उनका पूरा परिवार, और उनके दादा का परिवार भी हैदराबाद से ही संबंधित था। सानिया को इतना कुछ कहने की जरूरत ही नहीं थी। आखिर इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि वे तेलंगाना की नागरिक हैं या नहीं, उनका जन्म हैदराबाद में हुआ है या नहीं, या फिर उनके परिवार का इस राज्य के साथ रिश्ता कितना गहरा और पुराना है। यह कोई मुद्दा ही नहीं है। वे भारत की नागरिक हैं, यही पर्याप्त है।
अनेक लोगों ने सानिया का समर्थन करते हुए भी टिप्पणी की है कि ब्रांड एंबेसडर बनने के लिए उनका चयन उचित है या नहीं, इस बारे में वे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे वरिष्ठ राजनीतिज्ञ के बयान पर खास तौर पर अफसोस होता है जिन्होंने कहा है कि जब किसी का विवाह किसी अन्य देश में हो जाए तो उसकी निष्ठा दोनों देशों के बीच बंट जाती है। सानिया ने अनेकों बार कहा है कि जब भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच होता है तो वे हमेशा भारत का समर्थन करती हैं। यूँ भी, वे जिस खेल को खेलती हैं उसमें मुकाबला भारत और पाकिस्तान के बीच नहीं होता। श्री स्वामी सिर्फ इस वजह से ऐसा बयान दें कि सानिया के खिलाफ मूल बयान उनकी पार्टी के एक सदस्य का आया, किसी भी तरह से उनका कद बड़ा नहीं करता। हॉलीवुड के कितने ही अदाकार ऐसे देशों या ऐसी कंपनियों के ब्रांड एंबेसडर बनाए गए हैं, जिन देशों में जन्म लेना तो दूर उनका दूर-दूर तक का वास्ता नहीं रहा। हॉलीवुड अभिनेत्री जूडी डेंच को राजस्थान का ब्रांड एंबेसडर बनाए जाने की चर्चाएं चलती रही हैं और भारतीय कंपनी माइक्रोमैक्स ने हॉलीवुड स्टार ह्यू जैकमैन को ब्रांड एंबेसडर बनाया है, जो ऑस्ट्रेलियाई हैं। पाकिस्तानी कंपनी क्यू-मोबाइल करीना कपूर और आदित्य राज कपूर को ब्रांड एंबेसडर बना चुकी है। जॉन एब्राहम सुप्पैया के बारे में के लक्ष्मण क्या कहेंगे जो एक भारतीय शेफ (रसोइया) हैं लेकिन मलेशिया में तुर्की के ब्रांड एंबेसडर बनाए गए हैं।
माना कि इलाहाबाद में जन्म लेने वाले अमिताभ बच्चन को समाजवादी पार्टी की पिछली सरकार ने उत्तर प्रदेश का ब्रांड एंबेसडर बनाया था लेकिन यही अमिताभ बच्चन नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्वकाल में गुजरात के ब्रांड एंबेसडर भी बनाए गए और उस राज्य से अमिताभ का कोई संबंध नहीं था। दिल्ली में जन्मे और मुंबई में बसे शाहरूख खान पश्चिम बंगाल के ब्रांड एंबेसडर रह चुके हैं। माधुरी दीक्षित मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग की ब्रांड एंबेसडर हैं।
हस्ती जो प्रेरित करे
ब्रांड एंबेसडर कारोबारी दुनिया में विकसित हुई अवधारणा है। अमूमन ब्रांड एंबेसडर के तौर पर ऐसी हस्ती को चुना जाता है जो लोगों को प्रेरित करती हो, प्रसिद्ध हो और लोगों का ध्यान आकर्षित करती हो। जिसकी बात में वज़न हो। जिसने अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियाँ हासिल की हों, जिनका संदेश लोगों पर असर डाले, जिनके साथ जुड़ने पर संबंधित ब्रांड का दर्जा और छवि बेहतर होती हो। यह संबंधित व्यक्ति पर एक तरह का नैतिक दबाव अवश्य डालता है, हालाँकि इसकी कोई बाध्यता नहीं है। लेकिन इस नैतिक दबाव की वजह से प्रायः ब्रांड एंबेसडर अपना रहन-सहन, बर्ताव, पसंद-नापसंद आदि बदलने का प्रयास करते हैं। वे उस ब्रांड के अधिकाधिक अनुकूल बनने की कोशिश करते हैं जिसे वे प्रमोट कर रहे हैं। संबंधित ब्रांड को आगे बढ़ाना उनका कारोबारी और नैतिक दायित्व है। किसी प्रचार अभियान या अन्य कार्यक्रम के लिए जब भी जरूरत हो, उपलब्ध रहना उनसे अपेक्षित है। यह पुराने जमाने के राजकवि या राज-ज्योतिषी की तरह कोई आधिकारिक पद नहीं है और न ही इसका चयन अखबारों में दिए जाने वाले रोजगार के इश्तहारों की तर्ज पर होता है, जिसमें अभ्यर्थी पर तमाम तरह की शर्तें लगाई जाती हैं।
इन सभी मापदंडों पर सानिया मिर्जा खरी उतरती हैं। उन्होंने एक महिला होने और अपेक्षाकृत कम उदार अल्पसंख्यक समुदाय से आने के बावजूद अपने क्षेत्र में उत्कृष्टता और उपलब्धियों की मिसाल कायम की है। न तो उनकी छवि में कोई कमी है और न ही आचरण में। उनकी लोकप्रियता में कोई संदेह नहीं। तेलंगाना के लिए सानिया जो कहेंगी, उसे आम लोगों द्वारा महत्व दिया जाएगा, क्या इसमें कोई संदेह है? सिर्फ इसलिए कि उन्होंने एक पाकिस्तानी से विवाह किया है, सानिया भारत के लिए पराई नहीं हो जातीं। के लक्ष्मण से यह पूछना दिलचस्प होगा कि क्या विवाह के बाद उनकी बेटियों का उनके परिवार से कोई संबंध नहीं रहेगा? कम से कम भारत में तो ऐसे हालात बिल्कुल नहीं हैं, जहाँ का कानून भी बेटियों को माता-पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार देता है। जैसा कि केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है सानिया सिर्फ तेलंगाना की नहीं हैं। वे इस देश की ब्रांड एंबेसडर हैं। सानिया जैसे व्यक्तित्वों पर इस देश को गौरव है। उन्हें आधिकारिक रूप से ब्रांड एंबेसडर बनाया जाए या नहीं, उन्होंने जिन ऊँचाइयों को छुआ है और देश के प्रति जितनी गहन निष्ठा दिखाई है, वह स्वयँ उन्हें ब्रांड एंबेसडर बना देता है। सानिया का यह बयान कि वे भारतीय हैं और मरते दम तक भारतीय रहेंगी, संकुचित राजनैतिक स्वार्थों से पैदा किए जाने वाले सौ विवादों पर भारी पड़ेगा।