जून 1999 में, शॉन फैनिंग ने 'नैपस्टर' नाम के एक सॉफ्टवेयर का विकास कर उसे इंटरनेट पर मुफ्त इस्तेमाल के लिए पेश किया। एक साल के भीतर हर युवक−युवती, किशोर−किशोरी, छात्र−छात्रा की जुबान पर नैपस्टर का नाम था। नैपस्टर ने काम ही ऐसा किया था। उसने दुनिया भर के संगीत प्रेमियों को एक−दूसरे के साथ अपना म्यूजि़क कलेक्शन साझा करने का मंच मुहैया कराया था। आपके पास जितने गाने हैं उन्हें नैपस्टर के जरिए इंटरनेट पर डाल दीजिए और वहां दुनिया भर के लाखों लोगों द्वारा डाले गए गानों की एमपी3 फाइलों को डाउनलोड कर अपने सिस्टम में ले आइए। कोई सीडी या कैसेट खरीदने की जरूरत नहीं। नैपस्टर पर अपनी पसंद का संगीत सर्च कीजिए और डाउनलोड कर लीजिए। संगीतप्रेमियों की तो जैसे मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई थी। नैपस्टर जितने दिन चला, खूब चला। वह दुनिया का सबसे लोकप्रिय सॉफ्टवेयर बन गया। मगर जल्दी ही उस पर प्रतिबंध की नौबत आ गई क्योंकि इस सॉफ्टवेयर के जरिए अनधिकृत रूप से डाउनलोड होने वाले हर गाने से उसके कॉपीराइट धारक के अधिकारों का उल्लंघन होता था। एकाध करोड़ उल्लंघन रोजाना! संगीत कंपनियों, संगीतकारों और गायकों ने अपने कॉपीराइट्स की हत्या पर हो−हल्ला मचाया और नैपस्टर बंद हो गया। लेकिन इससे पहले वह मनोरंजन की दुनिया में इंटरनेट के अच्छे−बुरे दखल की क्रांतिकारी संभावनाओं और उनके विस्फोटक प्रभावों की प्रस्तावना लिख गया।
डिजिटल टेक्नॉलॉजी में हुए अभूतपूर्व विकास ने मनोरंजन के क्षेत्र में नई क्रांति को जन्म दिया है। विषय−वस्तु के निर्माण से लेकर उपभोक्ता तक उसकी डिलीवरी के तौर−तरीके बदल रहे हैं। मनोरंजन को प्राप्त करने का ढंग बदला है और विषय वस्तु को सहेजने का भी। उपभोक्ता और निर्माता, दोनों ही अपनी−अपनी सीमाओं से मुक्त हो गए हैं। एक के लिए विश्व के नए, अनजान क्षेत्रों में कारोबारी संभावनाओं का विस्फोट हुआ है तो दूसरे के लिए सामग्री की वैरायटी और स्रोतों की कमी नहीं रही। संगीत, वीडियो और फिल्मों से लेकर नाटक तक हर चीज अपने अलग−अलग फ्लेवर में, अलग−अलग फॉरमैट में, अलग−अलग स्रोतों पर, मुफ्त से लेकर रियायती दरों तक पर उपलब्ध है और उपभोक्ता के हाथ में चयन की वह शक्ति आ गई है जो पहले कभी उपलब्ध नहीं थी।
इंटरनेट पर उपलब्ध मनोरंजनात्मक विषय वस्तु मोटे तौर पर दो श्रेणियों में आती है। आप−हम जैसे आम लोगों द्वारा तैयार किए गए ऑडियो−वीडियो आदि पहली श्रेणी में आते हैं जिन्हें यूजर जेनरेटेड कॉन्टेन्ट कहा जाता है। अगर आपके पास अच्छा कंप्यूटर है और उसमें कुछेक जरूरी सॉफ्टवेयर मौजूद हैं तो आप सिर्फ उपभोक्ता ही बने रहने के लिए अभिशप्त नहीं हैं। आपका छोटा सा कंप्यूटर एक डिजिटल स्टूडियो की भूमिका निभा सकता है और आप एक ऑडियो या वीडियो निर्माता की। यदि आपके पास अपना मौलिक कॉन्टेंट नहीं है तो थोड़ा इधर से, थोड़ा उधर से और थोड़ा अपना मिलाकर आप इंटरनेट पर प्रसारण लायक सामग्री तैयार कर सकते हैं। यू−ट्यूब से लेकर आई−फिल्म तक और मेटा कैफे से लेकर गूगल वीडियो तक पर इस तरह की सामग्री की बाढ़ आई हुई है। डेली मोशन, हुलु और ऐसे ही अन्य ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं के जरिए विश्व के कोने−कोने में इसे देखा जा रहा है और इंटरनेट आधारित मनोरंजन की एक वैकल्पिक धारा का उदय हुआ है। ऐसी धारा, जो पेशेवर निर्माताओं के रहमोकरम पर निर्भर नहीं है। परिणाम सामने है। अकेले अमेरिका में ही हर माह अरबों वीडियो इंटरनेट के जरिए देखे जा रहे हैं।
दूसरी श्रेणी में वह मनोरंजनात्मक कॉन्टेन्ट उपलब्ध है जिसे इन्हीं कंपनियों, पेशेवर निर्माताओं, कलाकारों आदि ने खुद र्निमित किया है। ये लोग उस कॉन्टेंट के मूलभूत कॉपाराइट धारक हैं और अपने वितरण क्षेत्र का विस्तार चाहते हैं। वे कारोबार के नए स्रोतों, भौगोलिक सीमाओं से परे नए बाजारों की तलाश में हैं। हॉलीवुड और बॉलीवुड की अनेक फिल्में आज इंटरनेट−नागरिकों द्वारा डाउनलोड कर देखे जाने के लिए तैयार हैं। इंटरनेट ही क्यों, मोबाइल फोन जैसी छोटी सी किंतु शक्तिशाली युक्ति भी इस वितरण−तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। मोबाइल फोन की छोटी सी स्क्रीन पर शानदार रिजोल्यूशन वाली वीडियो सामग्री देखना संभव हो रहा है, विशेषकर 3जी तकनीक के आने के बाद।
अद्यतन टिप्पणीः नैपस्टर आज फिर सक्रिय है, लेकिन पूरी तरह कानूनी तौर तरीके से अपना काम कर रहा है। अब वह सबस्क्रिप्शन आधारित मॉडल के जरिए अपनी सेवाएँ दे रहा है जिनमें संगीत उद्योग के हितों की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था है।