ये हैं वे पच्चीस चुनिंदा परियोजनाएँ जो एक दशक से अधिक समय तक तमाम चुनौतियाँ झेलने के बावजूद न सिर्फ डटी रहीं बल्कि आगे बढ़ती चली गईं।इंडियाबुल्स.कॉम
शेयर कारोबार के लिए वेबसाइट शुरू करने वाली इंडियाबुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज ने भारतीय इंटरनेट बाजार में अभूतपूर्व व्यावसायिक सफलता दर्ज की है और ऑनलाइन बाजार से अब ऑफलाइन बाजार में भी झंडे गाड़ दिए हैं। भारतीय संदर्भों में इन्डियाबुल्स को गूगल जैसी ही अप्रत्याशित सफलता मिली है। एक वित्तीय कंपनी के रूप में काम करने वाली इन्डियाबुल्स.कॉम भारत की सर्वाधिक आय अर्जित करने वाली इंटरनेट आधारित कंपनियों में से एक है। अमेरिका में एक तेल कंपनी हैलीबर्टन में काम करने वाले समीर गहलोत ने मई 2000 में अपने दो साथियों राजीव रतन और सौरभ मित्तल के साथ मिलकर ऑनलाइन स्टॉक ब्रोकरेज के लिए इंडियाबुल्स.कॉम वेबसाइट की शुरूआत की। उन्होंने अपनी बचत की कमाई से दिल्ली की इनोरबिट सिक्यूरिटीज को खरीदा और शेयर बाजार में कदम रखे। तब से यह कंपनी चमत्कारिक रूप से बढ़ी है और तीस सितंबर 2007 को उसकी नेट वर्थ करीब 3800 करोड़ रुपए थी। ऑनलाइन कारोबार में हुए जबरदस्त मुनाफे और साख का लाभ उठाकर इंडियाबुल्स ने रियल एस्टेट के क्षेत्र में भी कदम रखा और अब उसकी एक और कंपनी इंडियाबुल्स सिक्यूरिटीज लांच हुई है। इंडियाबुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड और इंडियाबुल्स रियल एस्टेट लिमिटेड नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बंबई स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है।
अर्थव्यवस्था के उभरते हुए क्षेत्रों में इंडियाबुल्स जिस तरह से कदम बढ़ा रही है वह चौंकाने वाला है। रियल एस्टेट और सिक्यूरिटीज के बाद वह स्टैंडर्ड चार्टर्ड म्युचुअल फंड के अधिग्रहण की दौड़ में शामिल है, कंप्यूटर गेमिंग के क्षेत्र में निवेश कर चुकी है और अब उसने अपनी चार्टर्ड विमानन कंपनी का गठन भी कर लिया है। हाल ही में उसने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध रियल एस्टेट कंपनी देव प्रोपर्टी डवलपमेंट पीएलसी का 1091 करोड़ रुपए में पूर्ण अधिग्रहण किया है। और तो और वह रिलायंस की तर्ज पर अब वह बिजली उत्पादन और रिटेल के क्षेत्र में भी उतरने जा रही है। क्या आपने कभी कल्पना की थी कि एक डॉट कॉम से शुरू करने वाली कंपनी एक दशक की अवधि में अपना व्यावसायिक साम्राज्य इतना अधिक फैला सकती है?
रीडिफ.कॉम
रीडिफ को भारत का याहू! कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारत के सबसे पुराने पोर्टलों में से एक रीडिफ दुनिया की सर्वाधिक सफल सौ वेबसाइटों में से एक है। रीडिफ्यूजन एडवरटाइजिंग एजेंसी के सह−संस्थापक अजित बालाकृष्णन ने सन 1996 में याहू! की तर्ज पर रीडिफ की शुरूआत की थी। बारह साल में वह भारत का सबसे सफल व लोकप्रिय वेब पोर्टल और बहुत बड़ा इंटरनेट ब्रांड बन चुकी है। तकनीक, विषय वस्तु और सेवाओं के मामले में रीडिफ का जवाब नहीं। उसकी वेबसाइट संभवतरू विश्व की सबसे तेजी से खुलने वाली वेबसाइटों में से एक है और रीडिफ होमपेज पर सामग्री का जिस सुनियोजित ढंग से संयोजन किया गया है वह दूसरों के लिए एक मिसाल है। निःशुल्क ईमेल के मामले में उसने दुनिया की दिग्गज कंपनियों याहू, हॉटमेल (माइक्रोसॉफ्ट) और गूगल को कड़ी टक्कर दी है और कुछ मामलों में तो उन्हें पीछे भी छोड़ दिया है। नवीनतम एजॉक्स तकनीक पर आधारित रीडिफ मेल न सिर्फ बेहद तेज ईमेल सुविधा है बल्कि उसी ने सबसे पहले असीमित आकार वाले मेलबॉक्स की शुरूआत की। याहू ने अब जाकर असीमित ईमेल की सुविधा दी है जबकि माइक्रोसॉफ्ट हॉटमेल और गूगल का जीमेल अभी तक ऐसा नहीं कर सके हंै।
रीडिफ पोर्टल पर पठनीय और दर्शनीय विषयवस्तु के साथ−साथ शॉपिंग, रीडिफ बोल (इन्स्टैंट मैसेन्जर), आईलैंड (ब्लॉगिंग), वेब खोज, हवाई किराया खोज, होटल खोज, नौकरी खोज, वर्गीकृत विज्ञापन, वैवाहिक सेवाएं (रीडिफ मैचमेकर), सोशल नेटवर्किंग (रीडिफ कनेक्शंस), स्टॉक अपडेट और पोर्टफोलियो (रीडिफ मनीविज़), वीडियो−म्यूजिक−फोटो शेयरिंग (रीडिफ आई−शेयर) और उसके पाठकों द्वारा संचालित प्रश्नोत्तर मंच (रीडिफ क्यू एंड ए) जैसी सेवाएं भी उपलब्ध हैं जो उसकी विश्वस्तरीय छवि के अनुरूप हैं। रीडिफ की अधिकांश आय विज्ञापनों और मोबाइल ईमेल अलर्ट जैसी वेल्यू एडेड सेवाओं से होती है। उसने 2001 में 'इंडिया एब्रोड' का अधिग्रहण किया था जो अमेरिका में सर्वािधक लोकप्रिय भारतीय साप्ताहिक अखबार है। अमेरिकी स्टॉक मार्केट नैसडैक में सूचीबद्ध रीडिफ की बाजार पूंजी करीब आठ सौ करोड़ रुपए है।
नौकरी.कॉम
नौकरी.कॉम ने भारत में नौकरी ढूंढने के तौर तरीके ही बदल दिए। संजीव बीखचंदानी ने 1997 में नोएडा से इसकी शुरूआत की थी और पहले ही साल में करीब ढाई लाख रुपए का मुनाफा कमाया था। अगले साल यह मुनाफा बढ़कर बीस लाख रुपए हो गया तो संजीव को महसूस हो गया कि यह कारोबार चल निकलेगा। नौकरी.कॉम को भारत की पहली व्यावसायिक रूप से सफल वेबसाइट होने का श्रेय जाता है। नौकरी.कॉम ने न सिर्फ रोजगार ढूंढने वालों को मंच दिया बल्कि रोजगार देने वाली कंपनियों का काम भी काफी आसान कर दिया। आज किसी भी समय इस वेबसाइट पर औसतन 80,000 नौकरियों की सूची उपलब्ध होती है और वह 27,000 से ज्यादा कंपनियों को सेवाएं दे रही है। उसके पास रजिस्टर्ड उपयोक्ताओं की संख्या 85 लाख बताई जाती है। नौकरी.कॉम और उसकी तर्ज पर आई दूसरी वेबसाइटों के पहले कंपनियां अखबारों में अपने विज्ञापन देती थीं या फिर प्लेसमेंट कंपनियों की सेवाएं लेती थीं। रोजगार पाने के इच्छुक लोग इन्हीं विज्ञापनों और प्लेसमेंट कंपनियों के जरिए आवेदन करते थे और फिर सही उम्मीदवारों के चयन के लिए लंबी प्रक्रिया चलती थी। नौकरी.कॉम ने आवेदकों को अपने बायो−डेटा पोस्ट करने की सुविधा दी और लाखों आवेदकों के बायो−डेटा का डेटाबेस तैयार कर लिया। ऐसा ही एक डेटाबेस नियोक्ताओं का भी तैयार किया गया। आवेदक और नियोक्ता दोनों इस डेटाबेस में से अपनी जरूरत के अनुसार लोगों और नौकरियों की खोज कर सकते हैं जिससे दोनों पक्षों का काफी सारा समय, श्रम और धन बच जाता है।
नौकरी.कॉम इन्फोएज इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी का प्रभाग है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बंबई स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध इन्फोएज की बाजार पूंजी करीब ढाई हजार करोड़ रुपए है। नौकरी.कॉम ऑनलाइन सेवाओं के साथ−साथ विभिन्न शहरों में रोजगार मेलों का आयोजन भी करती है जो काफी सफल रहे हैं। अलबत्ता, इस कंपनी की तरफ से निकाली गई रोजगार पत्रिका खास नहीं चली, संभवतरू पाठकों की इस धारणा की वजह से कि ताजातरीन रोजगार सूची तो वेबसाइट पर मुफ्त उपलब्ध है और ऐसे में पैसा देकर पत्रिका खरीदने की क्या जरूरत है। कंपनी ने अब खाड़ी देशों में भी अपनी गतिविधियां शुरू की हैं और विश्व भर में उसके 1500 कर्मचारी हैं। इन्फोएज ने नौकरी.कॉम से आगे कदम बढ़ाते हुए कुछ और पोर्टल शुरू किए हैं जिनमें 99एकर्स.कॉम (रियल एस्टेट पोर्टल) और जीवनसाथी.कॉम (वैवाहिक पोर्टल) शामिल हैं।
इंडियाटाइम्स.कॉम
भारत के सबसे बड़े मीडिया घराने का इंटरनेट पोर्टल इंडियाटाइम्स.कॉम देश के सबसे बड़े पोर्टलों में से एक है। यह एक 'अम्ब्रेला पोर्टल' है जिसमें कई विशाल वेबसाइटें शामिल हैं। दुनिया का कोई भी और अखबार बेनेट कोलमैन कंपनी लिमिटेड की तरह हवाई टिकटों का आरक्षण करने, होटल बुकिंग करने, इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचने, ईमेल सेवा मुहैया कराने, अचल संपत्ति का लेनदेन करने और अपने पाठकों को वित्तीय निवेश संबंधी सेवाएं देने जैसे काम नहीं करता। अलबत्ता, एक दशक पहले टाइम्स समूह की छोटी सी इंटरएक्टिव शाखा के रूप में शुरू होने वाली टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड अपनी व्यावसायिक चतुराई, नवीनता, उभरते हुए सेक्टरों को केंद्रित करने की दूरदर्शी व आक्रामक रणनीति तथा टाइम्स समूह के मीडिया मायाजाल का बुद्धिमत्तापूर्ण इस्तेमाल करते हुए आज न्यू मीडिया का बहुत बड़ा ब्रांड बन चुका है, संभवतरू भारत का सबसे बड़ा इंटरनेट ब्रांड। टाइम्स समूह का दावा है कि यह भारत की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली और सबसे ज्यादा डाइवर्सीफाइड इंटरनेट कंपनी है।
इंडियाटाइम्स.कॉम की शुरूआत 1997−98 में हुई। इसमें टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की 90 फीसदी हिस्सेदारी है। शेष 10 फीसदी इक्विटी सीकिया कैपिटल के पास है जिसे उन्होंने 158 करोड़ रुपए में 2005 में खरीदा था। इस लिहाज से 2005 में इंडियाटाइम्स का मूल्य 1580 करोड़ था। इंडियाटाइम्स.कॉम की शुरूआत एक विशुद्ध कन्टेंट कंपनी के रूप में हुई थी लेकिन धीरे−धीरे उसने अपने पैतृक मीडिया हाउस की मजबूती और संसाधनों का लाभ उठाते हुए अनेक दिशाओं में अपना विस्तार कर लिया।
आज वह इंडियाटाइम्स के साथ−साथ टाइम्सऑफइंडिया.कॉम, इकॉनॉमिकटाइम्स.कॉम, नवभारतटाइम्स.कॉम और महाराष्ट्रटाइम्स.कॉम का भी संचालन करती है। इंडियाटाइम्स ने विभिन्न सेवाओं पर केंद्रित वर्टिकल पोर्टल भी शुरू किए हैं जिनमें टाइम्सजॉब्स.कॉम, ,सिम्प्लीमैरी.कॉम, ,मैजिकब्रिक्स.कॉम, ट्रैवल.इंडियाटाइम्स.काम, टेन्डर्स.इंडियाटाइम्स.कॉम, टाइम्समनी.कॉम, शॉपिंग.इंडियाटाइम्स.कॉम आदि प्रमुख हैं। उसने मोबाइल फोन से संबंधित वेल्यू एडेड सेवाओं के क्षेत्र में भी खासी सफलता हासिल की है। उसकी 58888 शॉर्ट कोड सर्विस भारत की सबसे लोकप्रिय मोबाइल सेवाओं में से एक है। अब उसने एक अमेरिकी कंपनी मोबियो के साथ अनुबंध कर आई−मोबिजो नामक मोबाइल प्लेटफॉर्म का विकास किया है जो उसके ग्राहकों को मोबाइल पर खबरें, शेयर भाव, प्रतियोगिताएं, राशिफल जैसी वेल्यू एडेड सेवाएं उपलब्ध कराएगा। महेंद्र स्वरूप इसके पहले मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे। आजकल दिनेश वाधवा उसके प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी का दायित्व संभाल रहे हैं।
वेब 18
वेब18 र्निविवाद रूप से भारत की सबसे तेज बढ़ती हुई इंटरनेट कंपनियों में से एक है। अपनी स्थापना के महज तीन चार साल के भीतर ही वह बहुत बड़ी हो गई है। राघव बहल के नेतृत्व वाले नेटवर्क 18 की इकाई के रूप में टीवी18 आज इंटरनेट पर लोकप्रिय होते लगभग हर प्रमुख क्षेत्र में सक्रिय है। आईबीएनलाइव.कॉम उसका सबसे प्रमुख पोर्टल है जिसने महज तीन साल की अवधि में अपनी नवीनता, व्यापकता और तकनीकी श्रेष्ठता के बल पर भारतीय समाचार पोर्टलों में अग्रणी स्थान बना लिया है। आईबीएनलाइव को भारत में सिटीजन जर्निलज्म, वेब आधारित वीडियो, ब्लॉगिंग (भारतीय पोर्टलों के संदर्भ में) को गंभीरता से लेने और प्रतिष्ठित करने का श्रेय जाता है। आईबीएनलाइव ने नेटवर्क18 समूह के टेलीविजन चैनल सीएनएन−आईबीएन की सामग्री का कनवरजेंस के जरिए बेहद रचनात्मक, रोचक और सुविधाजनक रूप से अपने वेब पोर्टल में प्रयोग किया जो दूसरों के लिए मिसाल बन गया। अब उसने ऑनलाइन टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण भी शुरू कर दिया है। कंपनी का दावा है कि यह भारत का पहले नंबर का समाचार पोर्टल है। वेब18 का एक अन्य वेब पोर्टल मनीकंट्रोल.कॉम बेहद सफल है और आईबीएनलाइव की तर्ज पर उसे भी अपने समूह के सीएनबीसी टेलीविजन चैनल की लोकप्रियता और विषयवस्तु का लाभ मिला है।
लेकिन वेब18 का वेब साम्राज्य यहीं तक सीमित नहीं है। वह निरंतर नई वेबसाइटों और पोर्टलों का विकास कर रहा है और कुछ अच्छी वेब प्रोपर्टीज के अधिग्रहण में लगा है। इस समूह के अन्य पोर्टलों और वेबसाइटों में स्टोरगुरु (ई−कॉमर्स), टेक2 (टेक्नॉलॉजी), जोश18 (हिंदी पोर्टल), ईजीएमएफ (म्युचुअल फंड), क्रिकेटनेक्स्ट.कॉम (क्रिकेट पोर्टल), कम्पेयरइंडिया (शॉपिंग), होमशॉप18.कॉम (इंटरनेट आधारित खरीददारी), बज18, एंटरटेनमेंट न्यूज (मनोरंजन), इन्डिवो (महिला पोर्टल), जॉबस्ट्रीट (रोजगार पोर्टल), बिजटेक2 (बिजनेस टेक्नॉलॉजी पोर्टल), कमोडिटीजकंट्रोल.कॉम (कमोडिटीज समाचार पोर्टल), यात्रा.कॉम (हवाई यात्रा व होटल बुकिंग), बुकमाईशो.कॉम (फिल्मों के टिकट), अरबनआईमीडिया (वेब डिजाइन) आदि शामिल हैं। और वेब18 इतने पर ही रुकने वाला नहीं है। वह मोबाइल के क्षेत्र में भी सक्रिय है और 52622 शॉर्ट कोड के जरिए बहुत सी वेल्यू एडेड सेवाएं दे रहा है। कंपनी ने एक मोबाइल प्लेटफॉर्म भी लांच किया है जिसके जरिए इस समूह के टेलीविजन चैनलों और अन्य मीडिया इकाइयों की सामग्री को मोबाइल पर देखा−पढ़ा जा सकेगा। ट्रेसर कैपिटल नामक एक कंपनी ने हाल ही में वेब18 में करीब 40 करोड़ रुपए का निवेश किया है। कंपनी को दिसंबर 2007 में समाप्त हुई तिमाही में 17 करोड़ से ज्यादा का ऑपरेटिंग प्रोफिट हुआ। हालांकि कई वेब पोर्टलों के अधिग्रहण संबंधी खर्चों की गणना करने पर कंपनी ने 7 करोड़ का नुकसान दिखाया है। निस्संदेह, वेब18 भारतीय इंटरनेट विश्व के धुरंधरों में से एक है और आने वाले दिनों में वह एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट कंपनी का रूप ले सकती है।
ईबे.इन (पहले बाजी.कॉम)
सन 2000 में, डॉट कॉम ध्वंस के दिनों में जब लोग इंटरनेट के जरिए खरीददारी की बात सुनते ही नाक−भौं सिकोड़ लेते थे, हार्वर्ड में शिक्षित अवनीश बजाज ने बाजी.कॉम के रूप में एक ई−कामर्स पोर्टल की शुरूआत की। बाजी पर न सिर्फ छोटे व्यवसायी अपने नए उत्पाद बेच सकते थे बल्कि आम उपभोक्ता अपने पुराने इलेक्ट्रॉनिक व अन्य सामान की बिडिंग (नीलामी) भी कर सकते थे। बाजी में स्टार टीवी और आईसीआईसीआई बैंक जैसे निवेशकों ने शुरूआती निवेश किया जिससे आरंभिक संघर्ष के बावजूद वह आगे बढ़ती रही। हालांकि दिल्ली पब्लिक स्कूल की एक छात्रा के अश्लील एमएमएस को किसी उपभोक्ता ने बाजी पर बिक्री के लिए डालकर मुख्य कार्यकारी अवनीश बजाज को जेल की हवा खाने को मजबूर कर दिया था। वे बड़ी मुश्किल से उस झंझट से बाहर निकले। खैर अंत भला तो सब भला। सन 2004 में विश्व की सबसे बड़ी ऑनलाइन नीलामी कंपनी ईबे ने 50 अरब डालर (200 करोड़ रुपए) में बाजी का अधिग्रहण कर लिया। बाजी ने भारत में ई−कॉमर्स को लोकप्रिय बनाने में अहम योगदान दिया है। बाजी अब ईबे.इन के नाम से कारोबार में जुटी है।
सिफी.कॉम
सिफी एक प्रमुख इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी (आईएसपी) है। सिफी.कॉम और रीडिफ भारत के सबसे शुरूआती इंटरनेट पोर्टलों में से एक है। इसकी परिकल्पना भारत की एओएल (अमेरिका ऑनलाइन) के रूप में की गई थी और नैसडैक में सूचीबद्ध इस कंपनी का मूल्य एक समय पर 44,000 करोड़ आंका गया था। लेकिन तब से हालात बहुत बदल गए हैं। हालांकि सिफी का पोर्टल काफी विस्तृत और विषय वस्तु से समृद्ध है लेकिन उसे ज्यादा पहचान राजेश जैन (जिनका एक लेख इस अंक में प्रकाशित हो रहा है) की इंडियावर्ल्ड.कॉम को करीब 500 करोड़ रुपए में खरीदे जाने से मिली। उस सौदे में सिफी को इंडियावर्ल्ड के अनेक इंटरनेट पोर्टल (जैसे खोज.कॉम, खेल.कॉम, समाचार.कॉम, बावर्ची.कॉम आदि) तो मिल गए लेकिन इतनी बड़ी रकम अदा करने के घाटे से वह आज तक नहीं उबर सकी। सन 1999 में फोर्च्यून पत्रिका ने उसे 'निवेश के लिहाज से सर्वािधक अनुकूल विश्व की दस सबसे प्रमुख कंपनियों' में गिना था। सिफी निजी क्षेत्र में भारत की पहली इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी थी और कुछ वर्ष पहले अपने कारोबारी मॉडल में बदलाव कर उसने देश भर में साढ़े तीन हजार साइबर कैफे का संजाल बिछा दिया है। सिफी की स्थापना आर रामराज ने की थी लेकिन अब वे इससे अलग हो चुके हैं और फिलहाल इस कंपनी का स्वामित्व राजू वेगेसना के पास है जिनकी एक कंपनियां सर्वरवर्क्स और सर्वरएंजिन्स अमेरिका में काफी सफल बताई जाती हैं।
मेकमाइट्रिप.कॉम
अप्रैल 2000 में दीप कालरा द्वारा स्थापित यह यात्रा पोर्टल इस क्षेत्र का सबसे सफल पोर्टल है। उसने विभिन्न एअरलाइनों के किरायों का तुलनात्मक विश्लेषण कर अपने ग्राहकों को सर्वश्रेष्ठ हवाई किराए उपलब्ध कराने की सुविधा दी जिसे लोगों ने हाथोंहाथ लिया। अगर कोई आपके धन की बचत कर रहा हो तो आप उसे क्यों नहीं चाहेंगे। पहले लोग सिर्फ एक एअरलाइन से टिकट बुक कराते थे और बुकिंग एजेंटों पर निर्भर थे जिनका एकमात्र उद्देश्य खुद ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना होता था। दीप कालरा ने देखा कि एक कंपनी के विमानों में लोगों को टिकट नहीं मिलते और दूसरी एअरलाइन के विमानों में सीटें खाली पड़ी रहती हैं। क्यों न विमानन कंपनियों से कहा जाए कि उन खाली रह जाने वाली सीटों को कम किराए पर ग्राहकों को उपलब्ध कराए। फिर जो ग्राहक समय से बहुत पहले बुकिंग कराना चाहें उन्हें भी थोड़ी अतिरिक्त छूट दी जाए। विकसित देशों में ऐसा पहले से ही हो रहा था। इस मॉडल में एअरलाइनों का भी लाभ था और ग्राहकों का भी। अब ग्राहक अपनी यात्रा की तिथि, प्रस्थान और गंतव्य के स्थान बताता है और मेकमाईटि्रप विभिन्न एअरलाइनों के सर्वरों से संपर्क करके वहां उपलब्ध न्यूनतम किरायों की सूची मुहैया करा देता है। ग्राहक जिसे चाहे वहीं पर चुनकर टिकट बुक करा सकता है और अपने कंप्यूटर प्रिंटर पर ई−टिकट का प्रिंटआउट ले सकता है। इस प्रक्रिया में उनका समय भी बचा और बुकिंग बहुत पारदर्शी भी हो गई। अब तो एजेंट भी मेकमाईटि्रप.कॉम और उसके बाद आई यात्रा.कॉम, ट्रेवल.टाइम्सऑफइंडिया.कॉम से सस्ते टिकट बुक करवाने लगे हैं।
इंडियागेम्स.कॉम
आज भारत में इंटरनेट और मोबाइल गेमिंग इंडस्ट्री में अचानक तेजी आ गई है लेकिन 1999 में जब विशाल गोंडल ने इंडियागेम्स.कॉम की स्थापना की तब गेमिंग को विदेशी कंपनियों का इलाका माना जाता था। इस वेबसाइट पर मुफ्त ऑनलाइन गेम्स खेलने की सुविधा दी गई। पोर्टल का कारोबारी मॉडल विज्ञापनों पर आधारित था लेकिन वह वेबसाइटों के लिए निराशा का दौर था और विज्ञापन बड़ी मुश्किल से मिलते थे। दो साल के संघर्ष के बाद सन 2001 के शुरू में इंडियागेम्स ने फ्री गेम्स वेबसाइट बंद कर दी और मोबाइल फोन के लिए गेम बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जो चल निकला। आज वह भारत में मोबाइल गेम्स के क्षेत्र में सबसे प्रमुख कंपनी बन गई है और न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी मोबाइल कंपनियों के लिए भी गेम विकसित कर रही है। एक चीनी कंपनी टोमोलाइन ने कुछ साल पहले इसकी 62 फीसदी इक्विटी खरीदी थी और तब इंडियागेम्स का मूल्य करीब 96 करोड़ रुपए आंका गया था। अब तो वह काफी बढ़ गया होगा।
कान्टेस्ट्सटूविन.कॉम
कान्टेस्ट्सटूविन.कॉम विभिन्न कंपनियों की ओर से प्रतियोगिताएं आयोजित करती है जिनका इस्तेमाल उनके उत्पादों का प्रमोशन होता है। इसकी स्थापना 1998 में आलोक केजरीवाल ने की थी। वह विभिन्न कंपनियों के लिए रोचक प्रतियोगिताएं तैयार करती है और अपने पोर्टल या मोबाइल के जरिए आम लोगों को उनमें हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करती है। इससे कंपनियों के उत्पादों का प्रचार होता है, प्रतिभागियों को इनाम जीतने का मौका मिलता है और कान्टेस्ट्सटूविन.कॉम को उसका राजस्व। कंपनी ने अपनी स्थापना के तीन साल बाद ही मुनाफा कमाना शुरू कर दिया था और इंटरनेट तथा मोबाइल के अभूतपूर्व प्रसार के इन दिनों में वह विज्ञापन आधारित गेम (एडवरगेमिंग) के जरिए भी अच्छी खासी कमाई कर रही है। वह चीन, खाड़ी देशों और पश्चिमी देशों में भी अनेक बड़ी कंपनियों को सेवाएं दे रही है।
हिंदुस्तानटाइम्स.कॉम
हिंदुस्तान टाइम्स अखबार समूह के ऑनलाइन पोर्टल को विषय वस्तु के लिहाज से सबसे व्यापक और तकनीकी लिहाज से श्रेष्ठतम पोर्टलों में गिना जाता है। इसे सन 2007 में श्रेष्ठतम टेक्नॉलॉजी के लिए 'पीसीवर्ल्ड वेब अवार्ड' मिला। बुनियादी रूप से यह एक समाचार पोर्टल है लेकिन समाचारों के अलावा यहां वीडियो, फोटो और अन्य बहुत सारी सामग्री भी उपलब्ध है। हिंदुस्तानटाइम्स.कॉम ने अनिवासी भारतीयों के लिए अलग से विशेष कवरेज देकर अन्य पोर्टलों को भी इस वर्ग के लिए सोचने को प्रेरित किया। इस पोर्टल पर हर माह करीब दस करोड़ पेज व्यूज दर्ज होते हैं। पोर्टल पर हिंदुस्तान टाइम्स अखबार का ईसंस्करण भी उपलब्ध है और अपना मोबाइल शॉर्टकोड 52424 भी है जो काफी लोकप्रिय है। इस समूह की अन्य वेबसाइटों में हिंदुस्तानदैनिक.कॉम, एचटीनेक्स्ट.इन, एचटीक्लासीफाइड्स.बिज, लाईवमिन्ट.कॉम, एचटीटेब्लायड.कॉम आदि शामिल हैं। हाल ही में एचटी मीडिया समूह ने करीब 40 करोड़ रुपए में एक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट देसीमार्टीनी.कॉम का अधिग्रहण किया है।
एनडीटीवी.कॉम
आईबीएनलाइव के आने से पहले एनडीटीवी.कॉम भारत के टेलीविजन चैनलों से जुड़ा सबसे लोकप्रिय पोर्टल था। आईबीएनलाइव.कॉम ने जिस तेजी से सफलता की ओर कदम बढ़ाए उसने एनडीटीवी.कॉम पर भी दबाव बनाया और करीब एक साल पहले इस पोर्टल का पुनर्गठन किया गया। जानी−मानी मीडिया हस्ती प्रणय राय के नेतृत्व वाले एनडीटीवी समूह के इस सफल पोर्टल का संचालन एनडीटीवी कनवरजेंस नामक कंपनी करती है जिसने प्रख्यात अमेरिकी कंपनी जेनपेक्ट के साथ मिलकर भारत में मीडिया आउटसोर्सिंग की शुरूआत की। भारत में टेलीविजन चैनल के वीडियो को ऑनलाइन उपलब्ध कराने के मामले में भी एनडीटीवी को अग्रणी माना जाता है। हालांकि उसने इन वीडियो पर शुल्क लगाया था जो बाद में आईबीएनलाइव द्वारा निरूशुल्क वीडियो सुविधा मुहैया कराए जाने पर हटा लिया गया। एनडीटीवी.कॉम आज भी एक बड़ी इंटरनेट प्रापर्टी है। इस समूह के और भी कई पोर्टल हैं जिनमें एनडीटीवीट्रेवल्स.कॉम, एनडीटीवीगैजेट्स.कॉम, एनडीटीवीशॉपिंग.कॉम, डॉक्टरएनडीटीवी.कॉम आदि खूब पढ़े और इस्तेमाल किए जाते हैं।
आईआरसीटीसी
भारतीय रेलवे के कैटरिंग और पर्यटन निगम की वेबसाइट (2001 में स्थापित) ने भारत में इंटरनेट आधारित सेवाओं के क्षेत्र में क्रांति कर दी। यह भारत की सबसे सफल ई−कॉमर्स आधारित वेबसाइट है। इंटरनेट से जुड़े लोगों को अब टिकट कटाने के लिए लाइन में खड़े होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यहां क्रेडिट कार्ड से टिकट कटवाने की व्यवस्था है। आप चाहें तो प्रिंटर से ई−टिकट प्रिंट कर लें और चाहें तो रेल टिकट को अपने घर भेजे जाने का निर्देश दे दें।
शादी.कॉम
पीपल इंटरएक्टिव की ओर से शुरू की गई इस वेबसाइट ने वर−वधू खोजने की प्रक्रिया को सरलीकृत कर दिया और युवक−युवतियों को अखबारी विज्ञापनों या रिश्तेदारों के जरिए आने वाले रिश्तों की सीमा से मुक्त कर दिया। अब वे विश्व भर में फैले अपने जैसे ही अन्य युवक−युवतियों के बीच जीवनसाथी की तलाश कर सकते हैं। इसे 1997 में बोस्टन कॉलेज से एमबीए करने वाले अनुपम मित्तल ने शुरू किया था। यह समूह अब ऑनलाइन से ऑफलाइन की ओर भी बढ़ा है और अपने दायरे तथा कारोबार का विस्तार करने के लिए उसने देश भर में शादी−प्वाइंट नामक दफ्तर खोले हैं। पीपल इंटरएक्टिव ने कुछ अन्य दिलचस्प वेबसाइटें और पोर्टल भी शुरू किए हैं जिनमें शादीटाइम्स.कॉम, एस्ट्रोलाइफ.कॉम और फ्रोपर.कॉम (सामाजिक नेटवर्किंग साइट) भी शामिल हैं।
भारतमैट्रीमनी.कॉम
शादी.कॉम और भारतमैट्रीमनी.कॉम के बीच पारंपरिक प्रतिद्वंद्विता चली आई है। शादी की ही तरह इसकी स्थापना भी 1997 में हुई। हालांकि तब यह अमेरिका से चलती थी और नाम था सिसइंडिया.कॉम। तब इसका उद्देश्य प्रवासी भारतीयों को एक मंच पर लाने के लिए किया गया था। लेकिन इसके संस्थापक संस्थापक जानकीरमन मुरुगावेल को बहुत जल्दी समझ में आ गया कि प्रवासी भारतीयों के लिए विवाह योग्य वर−वधू का चयन एक बड़ी समस्या है जिसे हल करते हुए एक इंटरनेट आधारित कारोबार शुरू हो सकता है। उन्होंने ऐसा ही किया और सन 2000 में अपने पोर्टल को भारत में भारतमैट्रीमनी.कॉम के नाम से दोबारा लांच किया। शादी.कॉम और भारतमैट्रीमनी.कॉम ने पढ़े−लिखे और कनेक्टेड भारतीय युवाओं के लिए जीवनसाथी ढूंढने के मायने बदल दिए। इनकी सफलता को देखते हुए इसी तरह के और भी कई पोर्टल लांच हुए जिनमें जीवनसाथी.कॉम और सिम्प्लीमैरी.कॉम शामिल हैं।
सुलेखा.कॉम
कोलकाता के भारतीय प्रबंधन संस्थान से जुड़े सत्य प्रभाकर और उनकी पत्नी ने 1998 में विश्व भर में फैले भारतीयों के लिखे लेखों को प्रकाशित करने के लिए इस वेबसाइट की शुरूआत की। लेकिन जल्दी ही यह प्रवासी भारतीयों के सबसे बड़े पोर्टल के रूप में विकसित हो गई। लेख और ब्लॉग आज भी सुलेखा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और पेंग्विन बुक्स ने इस पर छपे लेखों को आधार बनाकर पुस्तकें तक छापी हैं। लेकिन धीरे−धीरे यह प्रवासी भारतीयों को एक−दूसरे से जोड़ने, उनके वर्गीकृत विज्ञापनों के प्रदर्शन और विदेशों में होने वाले कार्यक्रमों का सुनियोजित विवरण देने वाली वेबसाइट भी बन गई है। भारत में चेन्नई और अमेरिका में ऑस्टिन से संचालित सुलेखा में इंडिगो मानसून ग्रुप और नोरवेस्ट वेंचर पार्टनर्स ने भारी निवेश किया है।
मैप्सऑफइंडिया.कॉम
कम्पेयर इन्फोबेस नामक कंपनी की ओर से 1997 में सािपति इस अनूठे प्ोट्रल में भारत के विभिन्न क्षेत्रों के राजनैतिक, भौगोलिक, प्रषासनिक और अन्य नक्षे षामिल किए गए। कोई बड़ी आर्थिक संभावनाएं न उभरने के बावजूद इसके प्रवर्तकों ने हार नहीं मानी और अपने काम में डटे रहे। अब जीपीएस के जमाने में उनके लाभ कमाने की बारी है। अब जबकि कारों, मोबाइल फोनों, जीपीएस यंत्रों और पीडीए आदि पर सानि−सान किे नक्षों को दिखाने का सिलसिला षुरू हो रहा है और एक विषाल बिजनेस मॉडल उभर रहा है तो मैप्सऑफइंडिया.कॉम के संस्थापकों को अपनी दूरदर्षिता पर गर्व हो रहा होगा।
इंडियामार्ट.कॉम
इंडियामार्ट ने छोटे−छोटे व्यवसायियों, निर्यातकों, सेवा प्रदाताओं, सप्लायरों, आयातकों आदि को इंटरनेट पर आकर अपनी मार्केिटंग करने का मंच प्रदान किया। इंडियामार्ट एक बी 2 बी (बिजनेस टू बिजनेस) बाजार है जो खरीददारों और विक्रेताओं को साथ आने का मौका देता है। 1996 में स्थापित इस वेबसाइट का दावा है कि करीब छह लाख कंपनियां उससे किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं। सन 2001 में डॉट कॉम ध्वंस के दिनों में भी बिजनेस वर्ल्ड ने उसे भारत की दस मुनाफे वाली वेबसाइटों में गिना था। यह कंपनी विभिन्न श्रेणियों में सेवा प्रदाताओं और निर्माताओं की सूची तो देती ही है, उनके उत्पादों को प्रमोट भी करती है। अब वह व्यापार मेले भी आयोजित करने लगी है और उसकी आय का अच्छा खासा हिस्सा छोटे कारोबारियों की वेबसाइटों के विकास से आता है।
इंडियाइन्फोलाइन.कॉम
इंडियाबुल्स की ही तर्ज पर इंडियाइन्फोलाइन ने भी (अप्रैल 1999 में) आम लोगों को वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए 5पैसा.कॉम के नाम से एक पोर्टल की शुरूआत की थी। उन्हीं दिनों शेयरखान.कॉम और कुछ समय बाद होमट्रेड.कॉंम नामक पोर्टल भी लांच हुए। होमट्रेड कुछ विवादों की चपेट में आकर बंद हो गया। अलबत्ता इंडियाइन्फोलाइन ने आम लोगों को शेयर बाजार से जोड़कर एक विशाल ग्राहक वर्ग तैयार किया। वह भारत के दोनों प्रमुख शेयर बाजारों में सूचीबद्ध है। उसने मार्च 2000 में एग्री मार्केिटंग सर्विसेज लिमिटेड नामक निवेश कंपनी का पूर्ण अधिग्रहण भी किया था और आज उसकी मार्केट कैपिटल करीब चार हजार करोड़ रुपए है। देश भर में करीब छह सौ शाखाओं वाला नेटवर्क स्थापित कर चुकी यह कंपनी भारत के साढ़े तीन सौ शहरों और कस्बों तक पांव पसार चुकी है। हालांकि जहां इंडियाबुल्स ने पुरानी अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों में कारोबार बढ़ाया वहीं इंडियाइन्फोलाइन ने नई अर्थव्यवस्था पर ही ध्यान केंद्रित रखा है।
क्रिकइन्फो.कॉम
विश्व की सबसे सफल क्रिकेट केंद्रित वेबसाइट क्रिकइन्फो इस खेल से संबंधित पुरानी से पुरानी और ताजा से ताजा सूचनाओं का सबसे बड़ा और विश्वसनीय जरिया बन चुकी है। चेन्नई के बद्री शेषाद्रि और के सत्यनारायण द्वारा स्थापित क्रिकइन्फो का सन 2003 में दुनिया की बेहद प्रतिष्ठित क्रिकेट केंद्रित कंपनी विजडेन के साथ विलय हो गया और पिछले साल ईएसपीएन नेटवर्क ने विजडेन से इसके पूर्ण अधिग्रहण की घोषणा की। क्रिकेट पर वेबसाइटें तो बहुत सी लांच की गईं लेकिन क्रिकइन्फो अपनी व्यापक विषय वस्तु, क्रिकेट खेलने वाले सभी देशों में कमाल की पहुंच, तकनीकी श्रेष्ठता, दिग्गज खिलाडि़यों से जुड़ाव और विश्वसनीयता के कारण उनसे बहुत आगे बनी रही और आज भी है। यह कंपनी क्रिकइन्फो के नाम से क्रिकेट पत्रिका भी निकालती है।
इंडियाप्रोपर्टीज.कॉम
ई−कामर्स के क्षेत्र में भारतीय इंटरनेट उद्यमियों की सफलता की एक और मिसाल है 1997 में स्थापित इंडियाप्रोपर्टीज.कॉम, जो प्रोपर्टी संबंधी विज्ञापनों के क्षेत्र में कार्यरत भारत की पहली वेबसाइट है। नरेश मलकानी की तरफ से स्थापित यह वेबसाइट भारत के सवा दो सौ शहरों में बिक्री या किराए पर उपलब्ध अचल संपत्तियों की सूची प्रकाशित करती है। उसने विक्रेताओं को दूरदराज के क्षेत्रों से ग्राहक तलाशने में मदद की है और खरीददारों को अपनी शर्तों और जरूरतों के अनुकूल संपत्तियां खरीदने में। उसकी ज्यादातर आय संपत्ति के विज्ञापनों से आती है लेकिन अब उसने बैंकों के साथ गठजोड़ कर हाउसिंग लोन जैसी सेवाएं देना भी शुरू किया है। उसकी देखादेखी मैजिकब्रिक्स.कॉम, मकान.कॉम, 99एकर्स.कॉम जैसे अन्य पोर्टल भी सामने आ गए हैं।
जपाक.कॉम
अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की जपाक डिजिटल एंटरटेनमेंट लिमिटेड की ओर से अक्तूबर 2006 में शुरू किया गया यह पोर्टल रिलायंस समूह की अपने क्षेत्र में सबसे आगे रहने की रणनीति के अनुरूप ही महज डेढ़ साल में भारत का सबसे बड़ा ऑनलाइन गेमिंग पोर्टल बन गया है। रिलायंस की ओर से लांच किए गए जबरदस्त प्रचार अभियान के चलते एक दशक पुराने गेमिंग पोर्टल भी इससे कहीं पीछे छूट गए हैं। जपाक के आने के बाद भारत में गेमिंग इंडस्ट्री मजबूती के साथ उभरी है और उसमें मौजूद संभावनाओं ने सबका ध्यान खींचा है। अब इस पर ईमेल सुविधा भी उपलब्ध है और वह भी काफी लोकप्रिय है।
वेबदुनिया.कॉम
इंदौर के नई दुनिया समूह के विनय छजलानी द्वारा प्रवर्तित वेबदुनिया की शुरूआत सन 2000 में पहले भारतीय भाषाई पोर्टल के रूप में हुई। वेबदुनिया ने इस धारणा को गलत सिद्ध कर दिया कि भारतीय भाषाओं के पोर्टल व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हो सकते। उसने न सिर्फ विज्ञापनों से बल्कि विभिन्न तकनीकी कंपनियों को दी गई तकनीकी सेवाओं से भी अच्छा खासा राजस्व अर्जित किया और आज वह भारत की सबसे सफल भाषायी इंटरनेट कंपनी है। वेबदुनिया का पोर्टल मूल रूप से समाचार−विचार आधारित है लेकिन उसने ईमेल, ईपत्र, ब्लॉग, मोबाइल आदि क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय सेवाएं मुहैया कराई हैं। कई महत्वपूर्ण भाषायी कंप्यूटर अनुप्रयोगों के विकास में भी वेबदुनिया का योगदान है।
प्रभासाक्षी.कॉम
द्वारिकेश इन्फोरमेटिक्स लिमिटेड ने 2001 में प्रभासाक्षी.कॉम की शुरूआत की और तमाम तकनीकी बाधाओं और डॉट कॉम ध्वंस जनित दबावों का सफलता से सामना करते हुए आज यह पोर्टल रोजाना पांच लाख पेज व्यूज हासिल करने वाला सफल हिंदी समाचार पोर्टल बन चुका है। हिंदी के अन्य सभी सफल पोर्टल किसी न किसी समाचार समूह से जुड़े हैं। ऐसे में एक पूर्णतरू इंटरनेट आधारित कंपनी के रूप में प्रभासाक्षी की सफलता महत्वपूर्ण है। भारत और भारतीयता पर केंद्रित, भारतीय भाषाओं से जुड़ी तकनीकी समस्याओं से लगभग मुक्त इस समाचार पोर्टल को पीसीक्वेस्ट ने भारत के शीर्ष 250 तकनीकी परियोजनाओं में गिना है।
जागरण.कॉम
वेबदुनिया की तरह जागरण.कॉंम भी हिंदी के सबसे शुरूआती समाचार पोर्टलों में से एक है। इस पोर्टल ने अपने पैतृक अखबार समूह के विशाल ढांचे और कन्टेंट पूल का पूरा लाभ उठाते हुए अपने आपको हिंदी के शीर्ष पोर्टल के रूप में स्थापित कर लिया है। पिछले साल याहू के साथ हुए समझौते के बाद जागरण अब याहू के हिंदी संस्करण के एक चैनल के रूप में भी उपलब्ध है जिसके महत्वपूर्ण वित्तीय निहितार्थ हैं।
(यह आलेख सन् 2008 में लिखा गया था। हालाँकि इसके अधिकांश भाग आज भी प्रासंगिक है)।