जिस समय पूरी दुनिया सांस रोके टेलीविजन के जरिए मुंबई में आतंकवादियों के वीभत्स कारनामों पर नजर लगाए हुए थी, ठीक उसी समय ताज और ट्राईडेंट होटलों तथा नरीमन हाउस में घुसे जेहादी तत्व विश्व भर में फैले डर, आशंका और नफरत को देखकर आनंदित हो रहे थे। होटलों के केबल कनेक्शन काट दिए जाने के बाद भी वे अपने−अपने ब्लैकबेरी स्मार्टफोनों के जरिए बाहरी दुनिया से लगातार जुड़े हुए थे। वे न सिर्फ सेटेलाइट फोन के माध्यम से पाकिस्तान स्थित नियंताओं से लगातार निर्देश ले रहे थे बल्कि इंटरनेट पर उपलब्ध खबरों और संवेदनशील सूचनाओं से भी अवगत हो रहे थे। अगर वे आश्चर्यजनक रूप से 60 घंटे तक भारत के श्रेष्ठतम कमांडो से लोहा लेते रहे तो शायद इसलिए भी कि वे हर क्षण ताजा सूचनाओं से लैस थे।कंधे पर राकेट लांचर लादे, हाथों में राइफल संभाले, सिर पर पगड़ी बांधे, पुरानी जीपों में बैठकर बेकसूर लोगों को गोलियों का निशाना बनाते अर्धसाक्षर और धर्मांध जेहादियों का जमाना बीत चुका है। आज का आतंकवादी लंबा प्रशिक्षण प्राप्त आधुनिक युवक है जो जीन्स और कारगो पैंट पहने, पीठ पर असलाह भरे रकसैक लादे, फर्राटे से अंग्रेजी बोलने में सक्षम किसी फौजी कमांडो से कम नहीं है। इतना ही नहीं, वह आधुनिकतम तकनीक से सुपरिचित है और अपना 'मिशन' पूरा करने के लिए मोबाइल फोन, जीपीएस युक्त गैजेट्स, ईमेल तथा इंटरनेट जैसे साधनों को बतौर हथियार इस्तेमाल करने में सक्षम है। ग्यारह सितंबर 2001 के हमलों में अलकायदा आतंकवादियों ने हमें अपनी रणनीति, युद्ध क्षमता और जुनून दिखाकर चौंका दिया था। अब मुंबई में पाकिस्तानी जेहादियों ने अधिकतम विनाश करने की काबिलियत और तकनीकी दक्षता दिखाकर सुरक्षा एजेंसियों को चिंता में डाल दिया है। प्रश्न उठता है कि क्या हमारा सुरक्षा तंत्र तकनीक के शातिराना इस्तेमाल से उपजी गंभीर आतंकवादी चुनौती का सामना करने को तैयार है?
दूरसंचार के आधुनिक तौरतरीकों और इंटरनेट के आगमन ने आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई का दायरा बढ़ा दिया है। अब यह लड़ाई सिर्फ हथियारों और हथगोलों की लड़ाई नहीं रही, बल्कि सूचना तंत्र की भी लड़ाई है। इंटरनेट आधारित सेवाओं और सूचनाओं के विस्फोट ने आतंकवादियों को वह शक्ति दे दी है जो उन्हें पहले प्राप्त नहीं थी। उन्हें अपनी बात कहने का वैकल्पिक मंच उपलब्ध करा दिया गया है जो किसी भी किस्म की सीमाओं और प्रतिबंधों से मुक्त है। उन्हें संचार का बेहद कारगर समानांतर माध्यम दे दिया गया है जिसकी बदौलत वे न्यूनतम खर्च में विश्व स्तर पर अपने सूचना तंत्र का संचालन और प्रसार कर सकते है। और वे ऐसा ही कर रहे हैं।
लश्करे तैयबा खुद बाकायदा एक वेबसाइट चलाता है जिसमें दावा किया गया है कि इस आतंकवादी हादसे के लिए 'हिंदू आतंकवादी' जिम्मेदार हैं। इधर तथाकथित 'डेक्कन मुजाहिदीन' ने हमले की जिम्मेदारी लेने के लिए ईमेल का प्रयोग किया जो अब ऐसे मामलों में आम हो चला है। यह ईमेल आतंकवादियों के तकनीकी कौशल का सबूत है जिन्होंने विशेष किस्म की 'रीमेलर सर्विस' के जरिए इसे भेजा। आम ईमेल खातों में जहां प्रेषक कंप्यूटर के आईपी एड्रेस का पता लगाना संभव है वहीं इस तरह की अधुनातन सेवाओं में उसकी पहचान या स्थान गुमनाम बना रहता है। दिल्ली के हालिया बम विस्फोटों के बाद 'याहू' के तकनीकी विशेषज्ञ मंसूर पीरभाई की गिरतारी से इस बात का खुलासा हो गया था कि आतंकवादियों को किस स्तर के विशेषज्ञों की सेवाएं हासिल हैं।
ताजमहल और ओबेराय होटलों में आतंकवादियों ने सूचना तकनीक का जिस हद तक इस्तेमाल किया वह रक्षा और आईटी विशेषज्ञों को भौंचक्का करने के लिए काफी है। ताज होटल में फंसे एंडि्रयास लिवेरस नामक एक 73 वर्षीय ब्रिटिश−साइप्रियट व्यापारी ने किसी तरह बीबीसी से संपर्क कर लिया और इस टीवी चैनल को दिए टेलीफोनी इंटरव्यू में बताया कि वह किस हालत में और कहां पर फंसे हुए हैं। इसके थोड़ी ही देर बाद वे आतंकवादियों की गोलियों के शिकार बन गए। होटल के भीतर से जो लोग टेलीविजन चैनलों और अन्य मीडिया संस्थानों के संपर्क में थे और जिनके पास टेलीफोन कॉल, एसएमएस संदेश और ईमेल आ रहे थे उन्हें आशंका थी कि इससे आतंकवादियों को उनके छिपने की जगह का पता चल सकता है। कारण, आतंकवादी खुद भी सेटेलाइट फोन और इंटरनेट से जुड़े हुए थे।
मुंबई के कुछ युवकों को अपने खींचे चित्र और सुरक्षा बलों की कार्रवाई का ब्यौरा ब्लॉगों, टि्वटर, लिकर और यू−ट्यूब आदि इंटरनेट ठिकानों पर रखने के लिए दुनिया भर में काफी प्रसिद्धि मिली है। लेकिन उनका यही कृत्य सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता था क्योंकि अगर आतंकवादी अपने ब्लैकबेरी स्मार्टफोन के जरिए उन्हीं इंटरनेट ठिकानों पर पहुंच जाते तो उन्हें बाहर हो रही कार्रवाई की पल पल की खबर मिलती रहती। इसके लिए उन्हें कोई बहुत दिमागी कसरत करने की जरूरत नहीं थी। गूगल पर एक सर्च ही पर्याप्त थी क्योंकि मुंबई के ब्लॉगरों की डाली सूचनाओं का जिक्र इंटरनेट पर सैंकड़ों स्थानों पर हो रहा था। इस बात को भी असंभव मत मानिए कि कल को ये तत्व खुद भी 'माइक्रो ब्लॉगिंग' या 'मोबाइल ब्लॉगिंग' जैसी सुविधाओं का प्रयोग अपने 'आतंकी मिशन' को पूरा करने और उसकी प्रगति पर निगाह रखने के लिए कर सकते हैं।
जांच एजेंसियों ने आतंकवादियों को मुंबई तक लाने वाली 'कुबेर' नामक मछलीमार नौका से उनकी कुछ चीजें बरामद की थीं जिनमें एक सेटेलाइट फोन के साथ−साथ दक्षिण मुंबई के विस्तृत मानचित्र को दर्शाती एक ग्लोबल पोजीशनिंग डिवाइस (जीपीएस युक्ति) भी शामिल थी। गर्मिन कंपनी की यह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति पश्चिमी देशों में बहुत लोकप्रिय है क्योंकि वह विश्व में किसी भी स्थान पर आपकी वर्तमान स्थित किो इंगित करने के साथ−साथ आसपास के रास्तों, इमारतों और नक्शों को अपनी स्क्रीन पर दिखाती रहती है। एक तरह का चलता−फिरता इंटेलीजेंट नक्शा, जो आपको किसी भी स्थान पर पहुंचने के शॉर्ट कट से लेकर दिशा और दूरी की तमाम उपयोगी सूचनाएं देता रहता है। 'गूगल अर्थ' के बारे में भारत सहित दुनिया की कई सरकारों को आपत्ति रही है कि उसमें दिखाए जाने वाले अहम ठिकानों के त्रिआयामी चित्र आतंकवादियों के हाथ लगकर विनाश को न्यौता दे सकते हैं। मंुंबई के हमलावरों ने गूगल की ही एक अन्य सेवा 'गूगल मैप्स' का अपने 'मिशन' के लिए इस्तेमाल कर उनकी आशंकाओं को सच कर दिखाया। आपने संवेदनशील स्थानों पर कैमरा ले जाने में मनाही वाले बोर्ड लगे देखे होंगे लेकिन जब गूगल अर्थ और गूगल मैप्स (सिर्फ गूगल ही क्यों, ऐसे और भी कई इंटरनेट ठिकाने हैं) पर सब कुछ पहले से उपलब्ध है तो अपराधियों और आतंकवादियों को फोटो लेने की क्या जरूरत है। इन वेबसाइटों में तो किसी भी घर, संस्थान या क्षेत्र के 3 डी चित्र देख सकते हैं और वह भी विभिन्न कोणों से। ऐसी कीमती सूचनाओं से लैस आतंकवादी क्या कुछ नहीं कर सकते?
जेहादियों के हाथों सेटेलाइट फोन का प्रयोग दिखाता है कि पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन अब अलकायदा के तौरतरीके सीख रहे हैं जो तकनीक के प्रयोग में काफी आगे है। बताया जाता है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी कार्रवाई के बाद से लश्करे तैयबा और जैशे मोहम्मद अलकायदा की छत्रछाया में चले गए हैं। संभवतरू यह उसी के प्रशिक्षण का नतीजा हो। सेटेलाइट फोन का स्थानीय दूरसंचार प्रोवाइडरों से संबंध नहीं होता और वे सीधे उपग्रह के माध्यम से अपने लक्ष्य से जुड़े होते हैं। ऐसे में उन्हें जाम करना या उनके संकेतों को इंटरसेप्ट करना मुश्किल होता है, खासकर तब, जब संबंधित सुरक्षा बल इस तरह की तकनीकों के प्रयोग में दक्ष न हों या ऐसी स्थित किा सामना करने के लिए तैयार न हों।
भले ही हमारी सुरक्षा एजेंसियां अब तक तकनीक से तालमेल न बिठा पाई हों मगर आज के आतंकवादी तेजी से प्रौद्योगिकी का अपने युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना सीख रहे हैं। वे मोबाइल कॉल करके बम विस्फोट करने लगे हैं। वे लापरवाह इंटरनेट यूजर्स के वाई−फाई नेटवर्क का इस्तेमाल कर धमकी भरे ईमेल भेजते हैं, प्रचार के लिए प्रजेन्टेशन तैयार करते हैं और ऑडियो या वीडियो फाइलों के रूप में जेहादी नेताओं के वीडियो जारी करते हैं। लेकिन तकनीक के इस सोफिस्टिकेटेड इस्तेमाल के बरक्स हमारा जवाब क्या है?
माना कि साइबर कैफे पर आने वाले अवांछित तत्वों पर हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने कुछ हद तक काबू पा लिया है लेकिन साइबर अपराध और साइबर आतंकवाद रोकने के हमारे प्रयास एक दशक पहले के आईपी एड्रेस ढूंढने, ईमेल फिल्टरिंग और स्पाईवेयर के इस्तेमाल जैसे पारंपरिक तौरतरीकों तक ही सीमित हैं। आतंकवादी इन सबका जवाब ढूंढ चुके हैं और इससे पहले कि लोकतांत्रिक शक्तियां साइबर युद्ध में इन विनाशकारी शक्तियों से पिछड़ जाए, हमारी सरकार को एक आक्रामक एवं आधुनिक साइबर सुरक्षा तंत्र बनाने की जरूरत है। इस मामले में अब और ढिलाई की गुंजाइश नहीं है।